एक जापानी कहानी है कि एक आदमी को एक भयंकर दानव हर वक्त तंग करता था । दानव के मारे उसका जीना दूभर था । आखिर आदमी ने उससे कहा – “तुम मुझे क्यों सताते है ? मैने तुम्हारा क्या बिगाडा है ?” दानव ने उत्तर दिया – “महाशय, मुझ पर इलजाम मत धरो । अपनी परेशानी के लिए तुम खुद जिम्मेदार हो । मैं जो कुछ हुं तुम्हारा बनाया हुआ हु । मुझे यह रुप तुम्हीनें दिया है ।”
जरा सोचिए कि यह दानव कौन है ? युद्ध का अकाल कदाचित् नहीं । यह दानव है भय, जो मनुष्य के अपने भीतर से उपजता है ।
यों तो मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है । वह प्राकृतिक शक्तिओं को अपने वश में करता चला जा रहा है । पर वह अपने ही भीतर से पैदा होनेवाले इस भय नामक दानव के हाथों परेशान है । यह ऐसा शत्रु है, जो उसकी सारी शक्ति धूल में मिला देता है । भूख, रोग, दरिद्रता और असफलता आदि का भय उसे हर वक्त परेशान रखता है । हरएक इंसान को यह चिंता खाए जाती है कि समाज, जाति और बिरादरी में वह अपनी मान-प्रतिष्ठा न खो बेठे । कल्पना जब ईस चिंता में तरह-तरह के रंग भरती है तो वह भयंकर दावन का रुप धारण कर लेती है और मनुष्य एक पागल की तरह चिल्ला उठता है ।
अजीब बात है कि संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी इस दानव के हाथों यो पराजित हो जाए । इससे भी अजीब बात यह है कि हम यह महसूस ही नहीं कर पाते कि हमारे अपने विचार इस भयंकर दानव का रुप धारण करके हमे डराते है । हमारे अपने मन के बाहर इसका कोई अस्तित्व नहीं है ।